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दीवाना हो जाता

दीवाना हो जाता


ये दिल अगर किसी का दीवाना हो जाता।

काश! इश्क का भी कोई पैमाना हो जाता।


भरी महफ़िल में जो बैठे हैं अलग अंदाज में।

उनके लबों से कोई ख़ुशनुमा गाना हो जाता।


कर लीं निग़ाहें नीची  उफ़ क्या अदा है हुस्न की।

नज़रों का इश्क से एकबार आशिकाना हो जाता।


खड़े कब से दिलज़लों की कतार में साहिब!

एक बार उनका इस तरफा आना हो जाता। 


मासूमियत उनकी घायल कर करती है दिल को।

आँखों  की शोखियों का गर  इतराना  हो जाता।


गेसुओं को झटका कुछ बूँद गालों पर आ गए।

मोतियों को समेटने  का कोई बहाना हो जाता।


हुस्न वाले कभी खुल कर खिलखिलाते क्यूँ नहीं।

लबों को खिलते देखकर कुछ मुस्कराना हो जाता।


गा रहा  हूँ ग़ज़ल आज मैं मोहब्बत के  तरन्नुम में।

काश ! उनका भी दिल आज दीवाना हो जाता।


स्नेहलता पाण्डेय"स्नेह"✍️✍️

नई दिल्ली

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